Published: 27 सितंबर 2017

स्वर्णयुक्त औषधियों से शरीर और मन का शुद्दिकरण संभव है

अगर आप कभी मिस्र जाएँ, तो वहाँ कैरो संग्रहालय में आपको स्वर्ण से बना दन्त-सेतु देखने को मिलेगा – यह 4,500 वर्ष पुराना है. स्वर्ण के धन बनने के हज़ारों साल पहले से अनेक रूपों में इसका प्रयोग होता रहा था. कतिपय ऐतिहासिक अध्ययन बताते हैं कि प्राचीन मिस्रवासी शरीर, आत्मा और मन की शुद्धि के लिए अपने भोजन में स्वर्ण चूर्ण का प्रयोग करते थे.

प्राचीन शहर, सिकंदरिया (ऐलग्ज़ैन्ड्रीअ) में रसायनज्ञों ने तरल स्वर्ण का ‘अमृत’ तैयार किया था, क्योंकि वे स्वर्ण को पूर्णता देने वाले रहस्यमय गुणों से युक्त मानते थे. उनकी मान्यता के अनुसार स्वर्ण मानव शरीर में नवजीवन का संचार कर सकता था और सम्पूर्ण स्वास्थ्य की पुनर्प्राप्ति के अतिरिक्त अनेक रोगों को ठीक कर सकता था.

किंवदंती है कि मध्ययुगीन यूरोप में स्वर्ण-आच्छादित दवा की गोलियां और ‘स्वर्ण जल’ अत्यंत प्रचलित थे. रसायनज्ञ ‘पीड़ादायक अंगों में आराम’ के लिए पेय पदार्थों में स्वर्ण का चूर्ण मिलाते थे (इससे पता चलता है कि यह गठिया ठीक करने के लिए क्यों प्रयोग किया जाता था). 15वीं और 16वीं सदी में, आधुनिक औषधि विज्ञान के जनक माने जाने वाले पेरासेलसस ने स्वर्ण सहित बहुमूल्य धातुओं का प्रयोग करके अनेक औषधियां तैयार की थी.

पेरासेलसस को लैट्रो-केमिस्ट्री, यानी औषधि रसायनशास्त्र का सिद्धांत प्रतिपादित करने का श्रेय जाता है, जो आधुनिक औषधि विज्ञान का आधार माना जाता है. स्वर्ण के औषधीय गुणों में आस्था 19वीं सदी तक जारी रही. कुछ लेखकों के अनुसार, एक सदी से अधिक समय से यूरोप के लोग दुकानों से बिना पर्ची के स्वर्ण-आच्छादित गोलियां और ‘स्वर्ण जल’ खरीदते रहे हैं.

आज के दौर में भी, चीन के गांवों में लोग आज भी प्राकृतिक चिकित्सा के रूप में स्वर्ण का प्रयोग करते हैं. वहाँ के किसान स्वर्ण के पुनर्स्थापक गुणों का लाभ उठाने के उद्देश्य से, चावल पकाने के समय उसमे स्वर्ण का सिक्का डाल देते हैं. साथ ही, शहरों के अनेक रेस्त्राओं में चीनी रसोइए ग्राहकों की थाली में 24 कैरट स्वर्ण का वर्क रख देते हैं.

आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह अतिशयोक्तिपूर्ण लग सकता है. किन्तु, ज़रा गौर करें : क्लिनिकल मेडिसिन ऐंड सर्जरी (नैदानिक चिकित्सा एवं शल्यक्रिया) के जुलाई 1935 अंक में, शिकागो के एक शल्यचिकित्सक, डॉ. एडवर्ड ओशेनर ने लिखा था कि, “जब रोगी के बचने की कोई आशा नहीं हो, तब कोलायडीय स्वर्ण (कलॉइडल गोल्ड) जीवन को लंबा करने और सहनीय बनाने में सहायक होता है, क्योंकि यह अन्त्य कैचेक्सिया (आम तौर पर पुराने रोग से सम्बंधित शारीरिक क्षरण एवं कुपोषण की अवस्था) की अवधि कम कर देता है, तथा पीड़ा एवं बेचैनी के साथ-साथ अधिकाँश मामलों में नींद की दवा की ज़रुरत कम कर देता है.

‘स्वर्ण के प्रति आसक्ति’ को एक रोग कहा गया है, किन्तु, असल में यह सबको चंगा करता है.