Published: 20 फ़रवरी 2018

स्वर्ण- हर किसी का परम मित्र

सरकार ने जब वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने का कदम उठाया, तब स्वर्ण पर 18% की दर से जीएसटी लगने का अनुमान था, क्योंकि यह विलासिता की वस्तु थी. किन्तु राज्यों और उद्योग संगठनों द्वारा इस दर का विरोध किये जाने पर इस वस्तु पर अंतिम रूप से 3% की दर लागू की गयी. लेकिन इस स्वीकृति के लिए सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. आखिकार, प्रत्येक परिवार के लिए एक संपत्ति के रूप में स्वर्ण का मूल्य कायम है.

राज्य सरकारों द्वारा स्वर्ण पर कम कर की दर के पक्ष में माहौल बनाने का एक कारण यह था कि भारत जैसे देश में स्वर्ण की खरीदारी केवल उच्च आय वर्ग का विशेषाधिकार नहीं है. भले ही वे ज्यादा खरीदते हैं, तो भी विभिन्न आय वर्गों में स्वर्ण रखना एक सर्वव्यापी घटना है.

आइसीई 3600 द्वारा संचालित एक सर्वेक्षण के अनुसार पिछले पांच वर्षों में भारत में प्रत्येक दो परिवारों में से एक ने स्वर्ण खरीदा है. कुल मिला कर देश में 87% परिवारों के पास कुछ न कुछ स्वर्ण है. दरअसल, वर्ल्ड गोल्ड कौंसिल के अनुसार भारतीय परिवारों के पास 24,000 टन का रिकॉर्ड स्वर्ण भण्डार है जिसकी कीमत 800 बिलियन डॉलर है.

इसके बावजूद कि स्वर्ण के अधिकांश खरीदार विभिन्न आर्थिक वर्गों से आते हैं, गरीबों की तुलना में धनी लोगों में स्वर्ण पर अधिक खर्च करने की प्रवृत्ति होती है. निम्न और उच्च आय वर्ग, दोनों ही आर्थिक एवं सामाजिक सुरक्षा के लिए इस चमकीले धातु को बीमा के रूप में देखते हैं. असल में, सर्वेक्षण के अनुसार, निम्न आय वर्ग अधिकांशतः चिकित्सीय आकस्मिकता या आर्थिंक संकट के लिए स्वर्ण ऋण लेता है, जिससे यह साबित होता है कि स्वर्ण एक विलासिता की वस्तु से अधिक मायने रखता है, और बीमा या आर्थिक बचत के समान ही एक बुनियादी आर्थिक वस्तु के रूप में भी देखा जाता है.

यह सब सिद्ध करता है कि वैसे देश में, जहां सामाजिक सुरक्षा कम है और बीमा का प्रसार सभी जगहों पर नहीं हुआ है, स्वर्ण न केवल धनी लोगों की विलासिता है, बल्कि गरीबों का तारणहार भी है.