Published: 01 सितंबर 2017

धरती का सारा सोना उल्कापात से आया

फिल्म निर्माता जेम्स कैमरून का अद्भुत अवतार - और उनकी काफी पुरानी फिल्म एलियंस - दोनों का निर्माण बहुमूल्य धातुओं के लिए दूसरे ग्रहों की खोज की कहानियों पर आधारित था। पूर्व-कोलंबियाई काल से ही अमरीकी मूलवासियों की मान्यता रही है कि चमकीला पीला धातु, स्वर्ण सूर्य देवता से शक्ति ग्रहण करता है। तो, कोई आश्चर्य नहीं कि वे इस धातु को ठीक ही दूसरे संसार का मानते थे। धातु की उत्पत्ति का अध्ययन करने वाले भूगर्भशास्त्री अब कहते हैं कि धरती का संपूर्ण स्वर्ण भंडार धरती के निर्माण के आरंभिक वर्षों में एक विशाल उल्का के पृथ्वी से टकराने पर आया।

ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्रियों का कहना है कि धरती के निर्माण के दौरान पिघली हुई चट्टानें इसके भीतरी केन्द्र में समा गईं। यह वह कालावधि थी जब ज्वालामुखियाँ और पिघली चट्टानें अभी भी पृथ्वी पर सुलग रहीं थीं। अधिकांश लोहा और अन्य भारी धातु पृथ्वी की बाहरी परत से इसके भीतरी केन्द्र की ओर समाते चले गए और पृथ्वी के अधिकांश बहुमूल्य धातुओं को भी अपने साथ ले गए।

इम्पीरियल कालेज लंदन के भूगर्भशास्त्री, मैथिअस विलबोल्ड ने इसकी तुलना जैतून के तेल (ऑलिव वॉइल) से भरी थाली की पेंदी में सिरके (विनगर) की बूँदों के एकत्र होने की प्रक्रिया से की है। इसका अभिप्राय यह है कि किसी काल खंड में 200 मिलियन वर्ष पहले उल्का के टकराने और धरती की संपदा में भारी बदलाव होने तक, धरती की ऊपरी परत पर सोना बिल्कुल नहीं था।

हालाँकि पृथ्वी की 25 मील मोटी परत में प्रत्येक 1,000 टन अन्य पदार्थों में लगभग 1.3 ग्राम ही सोना होता है, तो भी हमारी पृथ्वी के निर्माण को समझने की मानक विधियों के लिए इतना सोना काफी है। बीबीसी न्यूज को दिए एक साक्षात्कार में विलबोल्ड ने बताया है कि यह सिद्धान्त उल्का की गतिविधि एवं व्यवहार की समझ से मेल खाता है जो लगभग 3.8 बिलियन वर्ष पूर्व घटित तूफान के समय चरम अवस्था में था, जिसे ‘अंतिम महाविस्फोट’ कहा जाता है।

आजकल हमारी पृथ्वी पर सोने की प्रचुरता को समझने की विधि के रूप में इसी सिद्धान्त का अनुसरण किया जाता है। तथापि, वैज्ञानिकों का एक छोटा समूह इसके विपरीत एक वैकल्पिक सिद्धान्त की वकालत करता है। उनका मानना है कि धरती की परत में मौजूद सारा सोना - या इसकी काफी मात्रा - पृथ्वी के बनने के आरंभिक वर्षों से विद्यमान था।

यद्यपि अधिकांश सोना चरम अवस्थाओं में लोहे के साथ मिश्रित था और धरती की कोर में चला गया। इसमें से काफी मात्रा - संभवतः 0.2 - पृथ्वी की ऊपरी परत में 700 किलोमीटर नीचे मैग्मा ‘ओसन’ (पिघली हुई चट्टानों का महासागर) में घुल गया। बाद में ज्वालामुखीय परिघटनाओं द्वारा यह सोना वापस बाहरी परत तक आ गया और आज यह वही सोना है जिसकी खुदाई करके हम आभूषणों के रूप में इस्तेमाल करते हैं।