Published: 20 फ़रवरी 2018

स्वर्ण नियंत्रण अधिनियम और स्वर्ण बांड्स

Relation between gold control act and gold bond scheme

1962 में चीन के साथ भारत के युद्ध के कारण भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार काफी कम हो गया और रुपये के लिए समर्थन हट गया. रुपये को दुसरे देशों में जाने से रोकने के लिए सरकार ने 1962 में स्वर्ण नियंत्रण अधिनिमय लागू किया. मूल रूप से यह अधिनियम तीन साल के लिए था, लेकिन 1971 तक इसे बढ़ाया जाता रहा.

1962 के अधिनियम के अंतर्गत समस्त स्वर्ण ऋण को बैंकों द्वारा मंसूख कर दिया गया, ठोस धातु के रूप में स्वर्ण के निजी स्वामित्व पर रोक लगा दी गयी और स्वर्ण में वायदा व्यापार को प्रतिबंधित कर दिया गया. इसका उद्देश्य रुपये के अटकने की स्थिति में किसी वैकल्पिक मुद्रा की बाढ़ को रोकना था. 1963 में 14 कैरट से अधिक उत्कृष्ट स्वर्ण आभूषण के उत्पादन पर रोक लगा दी गयी.

इसके पांच साल के बाद सरकार ने स्वर्ण नियंत्रण अधिनियाम 1968 पारित किया. इसके तहत जनता के लिए छड़ों और सिक्कों के रूप में स्वर्ण रखना निषिद्ध हो गया और तमाम निजी स्वर्ण को स्वर्ण आभूषण में बदलने को अनिवार्य कर दिया गया. सुनारों को 100 ग्राम से अधिक स्वर्ण रखने की मनाही हो गयी. अनुज्ञा प्राप्त विक्रेताओं से कहा गया कि वे 2 किलो से अधिक स्वर्ण रख सकते, जो उनके द्वारा नियुक्त कारीगरों की संख्या पर आधारित था. विक्रेताओं के परस्पर व्यापार पर रोक लगा दी गयी. फलस्वरूप आधिकारिक स्वर्ण बाज़ार धराशायी हो गया.

1965 में स्वर्ण बांड योजना – जो उस समय देश में इस तरह का पहला कदम था – आरम्भ की गयी. इसमें खरीदारों के लिए कर से मुक्ति की व्यवस्था थी, बशर्ते कि यह उनके अघोषित धन का हिस्सा हो. किन्तु ये सारे उपाय अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल साबित हुए. यह स्वर्ण बाज़ार के विनियमन के लिए सरकार द्वारा लागू इस तरह की अनेक योजनाओं में सबसे पहली योजना थी.

स्वर्ण बांड योजना ग्राहकों से स्वर्ण जमा लेकर उन्हें एक निश्चित परिपक्वता राशि और ब्याज भुगतान के लिए प्रमाण पात्र (या बांड्स) देने के सिद्धांत पर आधारित थी. नवम्बर 1962 में जारी इस तरह के पहले बांड – 15-वर्षीय स्वर्ण बांड – पर 6.5 प्रतिशत (नवम्बर 1962) ब्याज तय किया गया.

इसके बाद 7 प्रतिशत वाली स्वर्ण बांड 1980 योजना (मार्च 1965 में निर्गत) आयी, जिसके बाद राष्ट्रीय रक्षा स्वर्ण बांड्स 1980 (यह भी 1965 में निर्गत किया गया था) आया. इन सभी योजनाओं की अवधि 15 वर्ष की थी. 1993 में सरकार ने एक और स्वर्ण बांड योजना लाने का प्रयास किया. यह स्पष्ट नहीं है कि इनमे से कोई भी योजना अपना वांछित उद्देश्य पूरा करने में सफल हुयी या नहीं.

एक धातु के रूप में स्वर्ण के मूल्य में लोगों का भरोसा अटल रहा.