Published: 27 सितंबर 2017

आर्थिक समावेशीकरण की लड़ाई – स्वर्ण किस प्रकार सहायक हो सकता है

Financial Inclusion With Gold In Indian Market

अधिकाँश निवेश परामर्शदाता दूसरी तरह से सोच सकते हैं, किन्तु भारत के ग्रामीण लोगों के लिए स्वर्ण एक आवश्यक और वंचित संपत्ति होता है. इसके कुछ तो सांस्कृतिक कारण हैं, किन्तु ग्रामीण आय अनियमित और अस्थिर होती है – अधिकांश आय फसलों के दो मौसमों के अंत में आती है – इस कारण से भी स्वर्ण यथेष्ट तरलता का एक बचत साधन बन जाता है.

एक और महत्वपूर्ण घटक है. आबादी के बड़े हिस्से की पहुँच बैंक ऋण या बैंक सेवाओं तक नहीं है; विधिवत बैंक ऋण संपत्ति के बदले नगदी प्रवाह के आधार पर तय होता है, जो ग्रामीण आबादी के पास दो रूपों में उपलब्ध रहता है – जमीन और स्वर्ण. जमीन अचल सम्पति है और बैंकों के पास स्वर्ण के सम्बन्ध में विशेषज्ञता काफी कम है.

कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि अगर ऋण चुकता नहीं हो तो जमानत के रूप में स्वर्ण को बेचा जा सकता है; कर्जदार ऋण के मकड़जाल में नहीं फंसता है, वहीं, बढ़ते ब्याज भुगतान के कारण ऋण सेवा कठिन हो जाती है. मानसून खराब होने से खेती की पैदावार बाधित हो जाती है और किसान एवं उसका परिवार कर्ज के चंगुल से निकलने में असमर्थ हो जाता है.

विगत कुछ वर्षों में, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों ने ऋण बाज़ार में, विशेषकर स्वर्ण के बदले ऋण देने के कारोबार में कदम बढाया है. इसकी प्रक्रिया काफी आसान है, कागजी कार्रवाई आसान है और किसान तथा ग्रामीण परिवार जरूरत होने पर कर्ज ले सकते हैं. अनेक विशेषज्ञों के मतानुसार, स्वर्ण ऋण आर्थिक समावेशीकरण का उत्तम साधन है, और यह विधिवत वित्तीय व्यवस्था द्वारा अभी तक प्रस्तुत किसी भी प्रस्ताव से बेहतर है.

इसकी संख्या भी काफी है. निजी स्वामित्व के अधीन लगभग 24,000 टन स्वर्ण है, जिसका अनुमानित मूल्य एक ट्रिलियन डॉलर के करीब है. इसमें से अधिकाँश स्वर्ण घरों और परिवारों के पास है, जिनकी एक बड़ी संख्या भारत के गावों में रहती है. समीकरण का दूसरा पहलू यह है कि भारत का आधे से अधिक उत्पादन असंगठित क्षेत्र से आता है, जिसमें श्रमिक आबादी के करीब 70 प्रतिशत लोगों को रोजगार मिला हुआ है. उस क्षेत्र में कारोबार के मालिक संभावित कर्जदार हैं, जो अपना स्वर्ण जमानत के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं.

आर्थिक समावेशीकरण के सन्दर्भ में, स्वर्ण एक चल संपत्ति है, जिसका मूल्य ह्रास लम्बे समय तक नहीं होता है. इस तरह यह ऋण का मार्ग प्रशस्त करता है जो कारोबारियों के लिए संजीवनी बन सकता है, और इसे संकट या आपात स्थिति में आसानी से बेचा जा सकता है.