Published: 01 सितंबर 2017

स्वर्ण का पवित्र दान

समृद्ध भारतीय संस्कृति के सबसे विशिष्ट पहलुओं में से एक है ”दान“, एक उदात्त कर्म जिसे प्राचीन काल से प्रत्येक धार्मिक एवं आध्यात्मिक भारतीय द्वारा अपनाया जाता रहा है। अलग-अलग समाराहों और अनुष्ठानों के अनुसार दान के विभिन्न प्रयोजन होते हैं।

दान के लिए भव्य आयोजन किया जाता है जिसमें परिजनों एवं अतिथियों के भोज के बाद दान संपन्न किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि धन के दान का फल एक ही जीवन भर मिलता है, जबकि स्वर्ण, भूमि और कन्या दान (हिन्दु पाणिग्रहण संस्कार का एक अनुष्ठान जिसमें पुत्री का दान किया जाता है) के फल सात जन्मों तक मिलते हैं।

यह पीला धातु शुद्ध और शुभ माना जाता है। स्वर्ण दान सर्वाधिक दानों में से एक कहा गया है। इस लेख में हम आपके समक्ष प्राचीन भारतीय ग्रंथों के अनुसार स्वर्णयुक्त विभिन्न प्रकार के दान की जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं। ये दान वैदिक ग्रंथों में उल्लिखित सोलह महादान का हिस्सा हैं।

 
  • तुला पुरुष दान

    इस दान में दानकर्ता या व्यक्ति तुला के एक पलड़े पर संपूर्ण शारीरिक कवच और अस्त्र-शस्त्रों के साथ बैठता है, जबकि तुला के दूसरे पलड़े पर शुद्ध स्वर्ण रखा जाता है। इसका भार 125-130 किलोग्राम तक हो सकता है। यह शुद्ध स्वर्ण समारोह में उपस्थित ब्राह्मणों में बाँट दिया जाता है समारोह में प्रयुक्त सोने से बनी तुला भी ब्राह्मणों को दान कर दी जाती है।

  • हिरण्यगर्भ दान

    यह एक स्वर्ण पात्र का दान है जो दैवीय गर्भ का प्रतिनिधित्व करता है। इस पात्र का आकार सोने के ढक्कन के साथ 54 इंच ऊँचा और 36 इंच चौड़ा होना चाहिए। इस पात्र को बनाने में लगभग 40-50 किलोग्राम सोने की आवश्यकता होती है। इसमें घी और दूध भरा रहता है।

  • ब्रह्माण्ड दान

    इसमें हमारे ब्रह्माण्ड की स्वर्ण निर्मित प्रतिकृति का दान किया जाता है। ब्रह्माण्ड के इस लघु प्रतिकृति का भार 1.25 किलोग्राम से 62.2 किलोग्राम तक हो सकता है जो दानकर्ता की क्षमता पर निर्भर करता है। समारोह के बाद लघु प्रतिकृति को दस भागों में विभक्त किया जाता है जिसमें से दो भागों को गुरु को दान किया जाता है और बाकी को ब्राह्मणों में वितरित कर दिया जाता है।

  • कल्प-पादप दान

    इस दान में दानकर्ता व्यक्ति कल्पवृक्ष (मनोकामना पूरा करने वाला दैवीय वृक्ष) की एक स्वर्ण लघु प्रतिकृति का दान करता है। इस वृक्ष को फलों, फूलों, पक्षियों, आभूषणों और परिधानों से सजाया जाता है। इस स्वर्णिम वृक्ष को गुरु एवं उनके शिष्यों को दान किया जाता है। इसी प्रकार, कल्पलता दान में कल्पवृक्ष सहित दस दैवीय लताओं का दान किया जाता है, जो फलों एवं आभूषणों से सजे होते हैं।

  • हिरण्य कामधेनु दान

    कामधेनु दिव्य गाय है जिसे समृद्धि की गाय तथा सभी गायों की माता माना जाता है। इस दान समारोह में कामधेनु गाय की सोने से बनी लघु प्रतिकृति के साथ दुधमुँहे बछड़ा का दान किया जाता है। गाय स्वर्ण आभूषणों से सुशोभित रहती है।

  • हिरण्य अश्व रथ दान

    इन दान के लिए दानकर्ता दो से आठ अश्वों के साथ एक रथ की स्वर्णिम प्रतिकृति तैयार करता है। अश्वों को स्वर्ण आभूषण पहनाए जाते हैं। इसी प्रकार, चार हाथियों से जुते रथ के दान को हेम हस्ती रथ दान कहते हैं।

  • धरा दान

    धरा का अभिप्राय धरती माता से है। इस दान में पावन नदियों, पर्वतों एवं महासागरों से परिपूर्ण पृथ्वी की सोने से बनी प्रतिकृति का दान किया जाता है।

  • सप्त सागर दान

    इसमें शर्करा, लवण, दुग्ध, घी, दही, गुड़ और पवित्र जल से भरे स्वर्ण पात्र दान किए जाते हैं। ये पात्र सात महासागरों का सांकेतिक प्रतिनिधित्व करते हैं।

ये दान क्रिया के कुछ तरीके हैं जिनमें गुरुओं, ब्राह्मणों एवं अन्य सम्मानित लोगों को स्वर्ण का दान सम्मिलित रहता है। ये भारत की समृद्ध एवं ऐश्वर्यशाली संस्कृति दर्शातें हैं।