Published: 20 फ़रवरी 2018

सोने की चिड़िया और ऊंचाई छूयेगी

Tale of India's rise to title of Sone Ki Chidiya

कोहिनूर जैसे बेमिसाल हीरे से लेकर अग्रेषित सोच वाले कामसूत्र जैसे ग्रन्थ तक, उन्नत कृषि तकनीकों से लेकर शानदार दृश्यों तक, 17वीं सदी के भारत में यह सब कुछ था. उस समय विश्व के सबसे धनी देशों में से एक होने के नाते भारत को “सोने की चिड़िया’ कहा जाता था, और इसके उचित कारण भी थे.

भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी का और बाद में ब्रिटेन का शासन स्थापित होने के पहले, यह विश्व के सबसे धनी देशों में से एक हुआ करता था. खेती में विशाल और विविधतापूर्ण वृद्धि थी, विदेशों के साथ व्यापार हमेशा चरम पर था, और आध्यात्मिक एवं दार्शनिक ज्ञान के केंद्र के रूप में इसकी ख्याति थी. जीवन के हर क्षेत्र में भारत विश्व का अगुआ था.

1 ईस्वी से लेकर 1000 ईस्वी के बीच भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे बड़ी और मजबूत थी. भारत के वर्तमान हालत, जहां विश्व व्यापार में हमारी हिस्सेदारी मामूली 2% है, के विपरीत 1500 ईस्वी में वैश्विक अर्थतंत्र में हमारा अंशदान लगभग 24.5%, यानी यूरोप की हिस्सेदारी के बराबर था. जैसा की पूर्व प्रधानमन्त्री, मनमोहन सिंह ने एक बार कहा था, “बेशक अंगरेजी साम्राज्य के विरुद्ध हमारी शिकायतों का ठोस आधार था. 1700 ईस्वी में वैश्विक आमदनी में भारत की 22.6% हिस्सेदारी, जो यूरोप की हिस्सेदारी के लगभग बराबर थी, 1952 में घटकर 3.8% के निम्न स्तर पर आ गयी.”

भारत कपड़ों, मसालों, मोतियों, चीनी और लौह आयुधों का प्रमुख निर्यातक हुआ करता था (और इनमें से अधिकांश वस्तुओं के लिए अभी भी है). इतने बड़े संसाधनों के आसानी से उपलब्ध होने के कारण, भारत को बहुत आयात की आवश्यकता नहीं थी.

व्यापार का प्राचीनतम इतिहास 800 ईसा पूर्व जितना पुराना है, जब कारोबार सुव्यवस्थित थे और कॉर्पोरेट कंपनियों का निर्माण होता था. असल में, ईसा पूर्व 5वीं सदी के ग्रंथों में श्रेणी का उल्लेख मिलता है, जो व्यापारियों का निकाय थी. यह निकाय कच्चे माल प्राप्त करता था, निर्मित वस्तुओं की गुणवत्ता और उनकी कीमत नियंत्रित करता था.

उस समय निर्मित विभिन्न स्मारकों और पुरावशेषों – लाल किला, ताज महल, स्वर्ण मयूर सिंहासन, आदि पर गौर करें. मुग़ल शासन काल में भारत की आमदनी 17.5 मिलियन पाउंड्स थी, जो ग्रेट ब्रिटेन के खजाने से ज्यादा थी.

जब विश्व के अधिकतर हिस्सों में वस्तु विनिमय पद्धति वाली अर्थव्यवस्था थी, भारत कुछ गिने-चुने देशों में से एक था जहां विकसित मुद्रा-आधारित व्यापार का प्रचलन था. दुर्भाग्यवश, इतिहास ने करवट बदली और भारत पर लगभग प्रत्येक देश का आक्रमण और शासन होने लगा. हम आपस में लड़ते रहे और देश का विशाल संसाधन धीरे-धीरे क्षीण होता गया.

आज, भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है और विश्व मंच पर शानदार प्रभाव स्थापित करने और एक बार पुनः सोने की चिड़िया बनने की दिशा में अग्रसर है.