Published: 20 फ़रवरी 2018

स्वर्ण की इच्छा

Edible gold & its role in modern cuisine

भारत के लोग अपने भोजन के प्रति गंभीरता के लिए मशहूर है और वे इसे गंभीरता से लेते भी हैं! चांदी की पन्ने, जिसे वरक भी कहा जाता है, से भोजन को ढंकने की पुरानी परम्परा से समय के साथ भोजन में वैभव का एक नया स्वरुप उभर कर आया है – स्वर्ण की पन्ने या ‘वरक’ का प्रयोग.

स्वर्ण को जैविक रूप से निष्क्रिय माना जाता है. यह अवशोषित हुए बिना ही अंतड़ियों से निकल जाता है. स्वर्ण का चुनाव करते समय, पक्का कर लेना चाहिए की यह यथासंभव अधिकतम शुद्ध है, यानी 22-24 कैरट का है. कम कैरट वाली स्वर्ण पन्ने में ज्यादा अशुद्धता होती है और खाद्यान के लिए यह कम सुरक्षित होता है. अगर आप सावधानी बरतें और स्पष्ट रूप से “आहार योग्य” लिखा हुआ स्वर्ण पन्नी खरीदें जो 22-24 कैरट का हो, तो स्वर्ण की पन्नी खाने में कोई हानि नहीं है.

महज 10 ग्राम आहार योग्य स्वर्ण की कीमत 30,000 रुपये तक हो सकती है और कुछ ही लोग इतनी कीमत अदा कर सकते हैं. यह स्वर्ण खाद्य श्रेणी का, आहार योग्य और विषरहित होता है. इसे पीट कर और चपटा कर कागज़ के अत्यंत पतले पन्ने के समान बनाया जाता है और इसकी गुणवत्ता बनाए रखने के लिए चिकनई रोधक कागज़ के पन्नों के बीच रखा जाता है. यह अधिकांशतः स्वादहीन होता है और मुख्यतः धनवान होने का प्रदर्शन करने या वैभव से जुड़ी वस्तु के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. खाद्यान में योगज के रूप में इस्तेमाल होने वाले स्वर्ण की ई-संख्या ई175 (खाद्य योगज) होती है. यद्यपि स्वर्ण का भक्षण करना चरम आहारीय सुख-साधन जैसा लगता है, इसमें कोई स्वाद नहीं होता, और इससे भोजन या पकवान में कोई मूल्यवर्धन नहीं होता है.

आहार योग्य स्वर्ण कोई हाल का प्रचलन नहीं है. इसे मूलतः मिस्रवासियों द्वारा एक मनोभाव के रूप में लागू किया गया था. प्राचीन मिस्र में, फेरो के मकबरे को सजाने और सर्कोफागी के लिए स्वर्ण फलक का प्रयोग होता था, क्योंकि इसे मिस्रवाशियों द्वारा एक पवित्र खाद्य माना जाता था, जिससे ईश्वर की कृपा और निकटता प्राप्त होती थी. स्वर्ण के प्रथम प्रयोग का इतिहास 5000 वर्ष पहले सिकन्दरिया और मिस्र में मिलता है.

विदेशों के वर्तमान परिदृश्य में, स्वर्ण एक रुचिकर खाद्यान के रूप में हावी हो गया लगता है जिसका प्रयोग विशेषकर मंहगे, मिशेलिन मानक वाले रेस्त्रांओं में किया जाता है. स्वर्ण फलकों के टुकड़ों के साथ इतालवी पुलाव (रीसॉटो) से लेकर स्वर्ण कण से लदे फलों और आहार योग्य स्वर्ण की छः परतों में लिपटे बर्गर तक, खाद्यान का यह प्रचलन रुचिकर भोजन में विश्व्यापी हो गया है. जर्मनी में बने गोल्डश्लैगर जैसी शराब के अल्कोहल में, स्पेन की चमकीली शराब में और कोइंत्रो और स्वर्ण के चपटे टुकड़ों (फलैक्स) से बने कैविअर (स्टर्जियन नामक मछली के अनिषेचित अंडों से बना व्यंजन) के रूप में सूक्ष्म कण मिलाने की पद्धति में भी इसका व्यापक उपयोग होता है. महाद्वीपीय युरोप में स्वर्ण फलकों के तैरते सूक्ष्‍म टुकड़ों के साथ शराब का इतिहास 16वीं सदी के उत्तरार्द्ध के समय से है, किन्तु इसका व्यवहार मूलतः चिकित्सीय उद्देश्य के लिए माना जाता था.

यद्यपि भारतीय व्यंजनों में आहार योग्य स्वर्ण के मिष्टान्नों में प्रयोग के अलावा कोई ख़ास नवाचार नहीं हुआ है, तथापि नए तरह के मंहगे खाद्यान के आविर्भाव के साथ इसके प्रचलन में तेजी और लोकप्रियता बढ़ने की व्यापक संभावना है. असली स्वर्ण की चकाचौंध और मोहकता जैसा और कुछ नहीं है. और सबसे अच्छी बात यह है कि अगर आप आहार योग्य स्वर्ण का प्रयोग करते हैं तो आप सचमुच इन शानदार स्वर्ण श्रृंगार का सेवन कर सकते हैं.