Published: 05 सितंबर 2017

कान छेदने की कला

Indian Ear Piercing Types

भारत में विभिन्न राज्यों, जातियों और समुदायों में कान छिदवाना काफी पुरानी परम्परा है. आधुनिक भारत में अधिक खर्च के बिना रूप निखारने के लिए अंग छिदवाना सबसे बढ़िया तरीका माना जाता है. पुरुष सामान्यतया केवल कान छिदवाते हैं, जबकि स्त्रियां अपने कान, नाक और यहाँ तक कि नाभि भी छिदवातीहैं.

बच्चों की शैशवावस्था में ही अक्सर उनके कान और नाक छिदवा दिए जाते हैं. आयुर्वेद के अनुसार, इसके अनेक लाभ होते हैं. कान की पालि (ईअरलोब) के मध्य में एक्यूप्रेसर के अनेक बिंदु होते हैं, जिनका सम्बन्ध तीक्ष्ण बुद्धि और बेहतर एकाग्रता से होता है. नाक छिदवाने के बारे में मान्यता है कि ऐसा करने से सांस, श्रवण, रक्तचाप और दौरा की व्याधियाँ दूर रहती हैं.

चूंकि अंग छिदवाना पीड़ादायक होता है, इसलिए इसमें, विशेषकर पहले अवसर पर, ध्यान और सावधानी की आवश्यकता होती है. इसलिए, यदि आप स्वयं का या अपने शिशु का अंग-छेदन करवाने की सोच रहे हैं, तो हमारा सुझाव है कि निम्नलिखित सावधानियों पर अवश्य ध्यान दें –

  • नवजात शिशुओं का अंग छेदन छः माह की आयु और अपेक्षित टीकाकरण के बाद ही करायें.
  • पक्का कर लें कि कान या नाक छेदने वाले सुनार या व्यक्ति के हाथ और औजार को असंक्रमित कर लिया गया है.
  • छिदे गए स्थान पर लगाने के लिए थोड़ा अल्कोहल या हाइड्रोजन पेरोक्साइड पहले से तैयार रखें. इससे संक्रमण का ख़तरा नहीं रहेगा.
  • पहली बार छिदवाने के समय स्वर्ण से बने छेदक तार या बालियों का प्रयोग करें, क्योंकि अन्य धातुओं की अपेक्षा स्वर्ण अप्रतिक्रियाशील होता है. स्वर्ण से बने आभूषण से संक्रमण की आशंका कम होती है.
  • आयुर्वेद में कहा गया है कि स्वर्ण धमनियों में रक्त-प्रवाह को और ऊतकों में रक्त के प्रवेश को सहज बनाता है. स्वर्ण से बनी बालियाँ कान में पहनने से शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह नियंत्रित होता है. कान छिदवाने के बाद कान में छल्ले या स्वर्ण के नग पहनना ठीक रहता है.

नीचे अंग-छेदन की कुछ उपलब्ध विधियां बतायी गयी हैं, जिनसे आपको सर्वोचित विकल्प चुनने में मदद मिलेगी –

  • सामान्य पालि छेदन कान की पालि छेदने की एक विधि है. यह सामान्यतः छेदन का पहला प्रकार है और प्रायः शिशुओं के लिए प्रयोग किया जाता है.
  • उपरी पालि छेदन विधि से सामान्य पालि से थोड़ा ऊपर लेकिन उपास्थि (कार्टिलेज) से नीचे छेदन किया जाता है. यह सबसे कम पीड़ादायक छेदन विधियों में से एक मानी जाती है.
  • अलिंद (ओरिकल) छेदन : कान के बाहरी घेरा के मध्य भाग में छेदन को अलिंद छेदन कहा जाता है. यह काफी पीड़ादायक होता है. परन्तु, इससे निश्चित रूप से सुन्दरता बढ़ती है. आजकल व्यावसायिक, या टिकठी छेदन (इंडस्ट्रियल या स्कैफोल्ड पिअर्सिंग) का सबसे अधिक प्रचलन है. इसमें एक स्थान पर अगल-बगल दो छिद्र किये जाते हैं और एक ही बाली को दोनों छिद्रों में घुसा कर पहना जाता है. सुन्दर और भडकदार दिखने के लिए इस तरह के छिद्र में स्वर्ण से बने तीर के आकार के कर्ण आभूषण पहनें.
  • शंख छेदन : इस प्रकार की छेदन विधि में कान की उपास्थि को छेदा जाता है, जो बिलकुल आश्चर्यजनक लगते हैं. वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के अनुसार, मान्यता है कि इस तरह के छेदन से दमा से राहत मिलती है.