Published: 27 सितंबर 2017

राजस्थान में स्वर्ण के लिए उतावली

2016 के अक्टूबर के मध्य में, राजस्थान के स्थानीय अखबारों में राज्य के टोंक जिले में एक परित्यक्त पत्थर खदान के पास “स्वर्ण के लिए उतावली” की खबर आयी. इस उतावली के पीछे एक ग्रामीण को स्वर्ण मुद्राएं मिलने की उड़ती अफवाह का हाथ था.

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने जब तक हस्तक्षेप किया तब तक चिड़िया दाना चुग चुकी थी. अखबारों ने स्थानीय ग्रामीणों के हवाले खबर छापी कि स्वर्ण के लिए उतावली अक्टूबर में आरम्भ हुयी थी और दो महीनों तक यह भागमभाग चलता रहा था.

एक और दैनिक अखबार के अनुसार, अधिकाँश मुद्राएं – जिनकी संख्या 2,000 से अधिक बतायी गयी थी – एएसआई के हस्तक्षेप के पहले ही गायब हो चुकी थीं. शुक्र है कि पुलिस द्वारा घर-घर की गयी तलाशी के बाद 108 मुद्राएं बरामद हो गयीं.

इसके खुलासे चौंकाने वाले थे. 106 मुद्राएं गुप्त वंश के तीन-तीन सम्राटों – समुद्रगुप्त (335-380 ई.), चन्द्रगुप्त द्वितीय (380-415 ई.) और कुमारगुप्त (415-455 ई.) काल की, दो मुद्राएं कुषाण वंश (30-230 ई.) काल की थीं.

कुषाण मुद्राओं पर एक ओर अग्नि में राजा द्वारा बलि चढाने का चित्र है. दूसरी ओर, यूनानी देवी-देवताओं के चित्र हैं. मुद्रा पर यूनानी भाषा में खुदा हुआ वाक्य इस प्रकार है : शाओ, नैनो, शाओ, कनिष्क कुषाण (सम्राटों के सम्राट, कनिष्क कुषाण).

गुप्त कालीन मुद्राओं पर देवताओं और देवियों के चित्रों के अलावा वीणा (वाद्य यंत्र), मोर, सिंहासन, आदि के भी चित्र हैं, और ब्राह्मी भाषा में शब्द खुदे हैं. गुप्त वंश काल की सबसे दुर्लभ मुद्रा वह है जिस पर कन्धों तक फैले केश वाली एक स्त्री सिंहासन पर बैठी हुयी है. उसने साड़ी पहन रखी है और मुद्रा पर खुदे शब्दों में उसे देवी के रूप में वर्णित किया गया है तथा स्त्री की स्वतंत्रता एवं अधिकार-सम्पन्नता की बात कही गयी है.

इसी प्रकार का एक खजाना अंतिम बार 1946 में मिला था, जब राजस्थान में भरतपुर के निकट बयाना में एक खुदाई स्थल से 1,821 मुद्राएं निकाली गयीं थीं.

ग्रामीणों द्वारा मुद्राओं को और निकालने से रोकने के लिए आजकल राजस्थान सशत्र आरक्षी बल का एक दस्ता खदान की रक्षा करता है. प्रशासन की चौकसी के कारण आसपास के 10 गावों के स्थानीय लोग शांत हैं. भागती भीड़ द्वारा छोड़े गए और इधर-उधर बिखरे खाद्यानों और जूते-चप्पलों के साथ आजकल इस खदान में शान्ति है.

लेकिन ग्रामीणों का मानना है कि स्वर्ण के लिए उनकी उतावली समाप्त नहीं हुयी है, यह केवल बाधित हुयी है.