Published: 18 सितंबर 2018

भारत की हट्टी गोल्ड माइंस का सुनहरा इतिहास

Ancient mining techniques

1902 में चालू हुई हट्टी माइन दुनिया की सबसे पुरानी खानों में से एक है। शोध-कर्ताओं के अनुसार, इस खेत्र में खनन गतिविधियाँ लगभग 1900 वर्षों से जारी हैं। इस खान के कारण ही कर्नाटक के रायचुर जिले का हट्टी क्षेत्र व्यावसायिक दृष्टि से दक्षिण भारत का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है।

प्राचीन खनन तकनीकें

प्राचीन खनिक 35 से 190 मीटर की गहराई में काम किया करते थे।

पुरातत्व शास्त्रियों के अनुसार, प्राचीन समय में खदान में चट्टानों को तोड़ने के लिए आग जलाने की तकनीक इस्तेमाल की जाती थी, जिसमें बारी-बारी से गर्म और ठंडा किया जाता था।

इसके बाद चक्कियों से अयस्क को मसलकर सोना निकाला जाता था।

पिसे हुए अयस्क और पानी के घोल को बकरे की खाल से छान कर सोने के कणों को हल्की- फुल्की अशुद्धियों से अलग कर लिया जाता था।

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हट्टी के इतिहास के उतार-चढ़ाव

1880 के दशक में हैदराबाद के निजाम ने हैदराबाद (डेक्कन)कम्पनी की तरफ से इस क्षेत्र में सोने के उत्खनन की औपचारिक शुरुआत की। 1902 और 1918 के बीच 3.8 टन अयस्क निकला गया, जिससे 7.41 टन सोना प्राप्त हुआ।

लगभग 40 वर्ष बाद 1920 में आर्थिक तंगी के कारण इस खान को बंद कर दिया गया। लेकिन, 1937 में रोजगार मुहैया करवाने के लिए निजाम ने एक बार फिर उत्खनन की संभावनाओं को टटोलने का फैसला किया, क्योंकि इस क्षेत्र में खेती के अलावा रोजगार के बहुत कम साधन उपलब्ध थे।

इस तरह, 1947 में, हैदराबाद गोल्ड माइंस कम्पनी लिमिटेड के तत्वाधान में इस क्षेत्र में उत्खनन गतिविधियाँ फर से शुरू हुईं।

1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद खदान का स्वामित्व हैदराबाद से कर्नाटक (तब मैसूर) के हाथ में आ गया और कम्पनी का नाम बदलकर हट्टी गोल्ड माइंस कम्पनी लिमिटेड (एचजीएमएल) कर दिया गया।

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नवीनतम कीर्तिमान

2011-12 में एचजीएमएल ने 5.66 टन अयस्क निकाला, जिससे लगभग 2181 किलोग्राम सोना प्राप्त हुआ। अब इस खदान की गहराई 2600 फुट तक पहुंच चुकी है। प्रतिदिन लगभग 1500 टन अयस्क निकाला जाता है, जिससे 7-8 किलो सोना प्राप्त होता है।

2015 में हट्टी गोल्ड माइन ने 1,399 टन सोने का उत्पादन किया। राज्य सरकार द्वारा उठाए गए बहुत-से नए कदमों को देखते हुए इन आंकड़ों में और इजाफा होने की आशा है। हट्टी क्षेत्र में सोने के उत्खनन में भरपूर विस्तार की संभावनाएं दिखाई दे रही हैं, जो भारत की सोने की मंडियों के लिए एक वरदान से कम न होगा।