Published: 01 सितंबर 2017

स्वर्णिम हाथी

पशु भारतीय पौराणिकता और परम्परा के अभिन्न अंग हैं। भारत में समस्त पशुओं में गाय, बैल, हाथी और अश्व पवित्र माने जाते हैं तथा हिन्दू मंदिरों एवं अन्य धार्मिक स्थलों पर उनकी मूर्तियाँ स्थापित हैं। ऐसी मान्यता है कि देवतागण और देवियाँ इन पशुओं पर सवार होकर भ्रमण किया करतीं थीं जिन्हें उनका ‘वाहन’ कहा जाता है।

भारतीय मंदिरों एवं अन्य पावन स्थलों पर इन पशुओं की पूजा होती है। उत्सवों एवं अन्य धार्मिक अवसरों पर उन्हें स्वर्ण आभूषणों से सजाया जाता है। विशेषकर हाथियों को स्वर्ण एवं अन्य रंग-बिरंगे आभूषणों से व्यापक रूप से सजाया जाता है। दक्षिण भारत के अनेक मंदिरों की यात्राओं में हाथियों का प्रमुख स्थान होता है। असल में केरल के अधिकाँश हिन्दू मंदिरों के पास अपने हाथी हैं।

ईश्वर के अपने देश, केरल के मंदिरों में करीब-करीब हरेक उत्सवों में हाथियों की उपस्थिति रहती है जो प्रायः स्वर्ण आभूषणों से सजे रहते हैं। केरल में ऐसा ही एक अद्भुत आयोजन त्रिसूर पुरम उत्सव है जिसमे आभूषण धारण किये हाथी देखते ही बनते हैं।

हाथियों के आभूषण और श्रृंगार निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

नेट्टीपट्टम: ये स्वर्ण जडित वस्त्र हैं जिनसे हाथी के गुम्बदाकार सिर का अग्रभाग ढंका रहता है. नेट्टीपट्टम को विभिन्न रूप-रंग और आकार-प्रकार से सजाया जाता है जिससे इस पवित्र स्तनपायी पशु की भव्य छवि और भी सुन्दर दिखाई देती है. इन वस्त्रों की किनारी रंग-बिरंगे फुन्दनों से सजी होती है।

नेट्टीपट्टम की लघु प्रतिकृति दीवारों पर टांगने और सजावट के लिए प्रयोग की जाती है।

घंटियाँ: रंगीन रस्सी में बंधी हुयी इन घंटियों को स्वर्ण से बनाया जाता है। रस्सी को हाथी की गर्दन पर पहनाया जाता है।

हार: हाथियों को सोना चढ़ा हार पहना कर सजाया जाता है।

छत्र: हाथियों पर सोने के फीते लगे मखमल के छत्र लगे होते हैं जिनसे इनकी विशाल और भव्य छवि की शोभा बढ़ती है।

वेंकिटाद्रि परिवार इस तरह के अलंकारों के प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं में से एक है। यह परिवार पिछली तीन पीढ़ियों से इस पवित्र पशु के लिए अलंकारों-आभूषणों का निर्माण कर रहा है। इनके बनाए आभूषणों को प्रसिद्ध त्रिसूर पुरम उत्सव में प्रदर्शित किया जाता है जहां वे एक सौ पचास हाथियों का श्रृंगार करते हैं। वेंकिटाद्रि के आभूषणों का प्रयोग नेम्मारा वेल्लांगी वेला उत्सव में भी होता है। वेंकिटाद्रि के अतिरिक्त, परमेक्कावु देवसोम, मारमिट्टाथु बालचंद्रन (बालन माशु) सबसे प्रमुख चमयम (श्रृंगार) विक्रेता हैं।