Published: 01 सितंबर 2017

वेंकटेश्वर मंदिर की स्वर्णिम गाथा

भारतीय विवाहोत्सव हमेशा से असंयमित एवं अतिव्ययी अनुष्ठान रहे हैं, यहाँ तक कि पौराणिक कथाओं में भी इसकी झलक मिलती है। किंवदंती के अनुसार भगवान वेंकटेश्वर ने राजकुमारी पद्मावती से अपने विवाह के लिए धन के देवता, कुबेर से 1 करोड़ 14 लाख स्वर्ण मुद्राओं का ऋण लिया था। इस ऋण से भगवान वेंकटेश्वर ने दिव्य वास्तुशिल्पी विश्वकर्मा को शेषाद्रि पर्वत को आनंददायक परिवेश के साथ अलंकृत करने का भार सौंपा। भगवान वेंकटेश्वर, जो भगवान विष्णु के एक रूप हैं, इस मंदिर में अपनी भार्या पद्मावती के साथ निवास करते हैं, जबकि देवी लक्ष्मी उनके हृदय में वास करती है।

भगवान वेकटेश्वर को कुबेर का ऋण चुकाना अभी बाकी है। इसलिए भक्तगण ऋण चुकाने में सहायता के लिए ‘हुण्डी’ (दानपात्र) में नगद एवं स्वर्ण दान करते हैं। इस हुण्डी के संग्रह से वेंकटेश्वर मंदिर विश्व का दूसरा सबसे धनवान मंदिर बन गया है जहाँ हर दिन 22.5 मिलियन भारतीय रुपयों का दान प्राप्त होता है। अप्रैल 2016 में मंदिर न्यास ने सरकारी पंजाब नैशनल बैंक में 1,311 किलोग्राम सोने की छड़ें (0.995 खरा) जमा करवाई थी। इससे भक्तों के प्रिय भगवान वेंकटेश्वर के प्रति उनकी भक्तिपूर्ण एवं कर्तव्य परायण अनुभूति परिलक्षित होती है।

यह समृद्ध मंदिर भारत में आँध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में शेषाद्रि पर्वतमाला की सातवीं चोटी पर पर्वतीय शहर तिरुमाला में अवस्थित है। कहा जाता है कि द्रविड़ वास्तुकला में निर्मित इस भव्य मंदिर का निर्माण 300 ईस्वी में आरंभ हुआ था एक लंबी अवधि में पूर्ण हुआ। इस मंदिर में तीन प्रवेशद्वार हैं जिनमें तीसरा प्रवेश द्वार बंगारुवाकिली है जिसके काष्ठनिर्मित दरवाजों को स्वर्ण से अलंकृत किया गया है और यह भगवान विष्णु के दशावतार का निरूपण है। इसके तिमंजिले गोपुरम का शीर्ष सोने से सजा है, जहाँ मंदिर के शिखर पर एक अकेला कलश है। यह कलश स्वर्णाच्छादित है और दूर से दिखाई देता है। स्वर्ण ध्वजास्तंभ, महाद्वारम तथा वेंदीवकिली के बीच खड़ा है।

हुण्डी अर्पण के अतिरिक्त तुलाभरम एक सुविख्यात प्रचलित अनुष्ठान है जो प्राचीन काल से चला आ रहा है। भक्तगण अपने शारीरिक भार से अधिक मात्रा में स्वर्ण एवं अन्य सामग्रियाँ भगवान वेंकटेश्वर को चढ़ाते हैं।

इस भव्य मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर पीतवर्णी धातु की प्रचुरता में स्नान करते हैं। उनकी प्रतिमा को प्रति दिन आपादमस्तक स्वर्णाभूषणों से अलंकृत किया जाता है। स्वर्ण मुकुट को भगवान विष्णु के लिए सूक्ष्मतापूर्वक गढ़ा गया है और इसका भार 10 किलोग्राम है। इसमें सोने की बालियाँ लगी हैं जिनमें गूढ़ता एवं शोभा दिखाई देती है। भगवान को पीत वस्त्र पहनाया गया है जो सोने की तार से बंधा है और सोने की पेटी से कसी है जिसकी छोर पर स्वर्णघंटी लगी है। इससे उनके परिधान की सुंदरता बढ़ती है और परंपरा का भाव प्रदर्शित होता है। इसके अतिरिक्त सोने का ढाँचा प्रतिमा के चरणों को ढँकता है। चरणों में सोने की पायल पहनाई गईं हैं। यह भक्तों द्वारा अपने प्रिय भगवान को दिए गए दान की याद दिलाता है। इन आभूषणों से भगवान वेंकटेश्वर के अतुलनीय धन का पता चलता है।

इस पृष्ठभूमि के आलोक में यह संपूर्ण भारत के अनगिनत भक्तों का मनपसंद स्थल बन गया है।