Published: 31 अगस्त 2017

मुम्बई में माइडस टच

गूगल पर ‘माइडस टच’ की सरसरी खोज करने पर मुम्बई में इस नाम के 15 स्थानों की जानकारी मिलती है। ये सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठान हैं, जो निर्यात, विज्ञापन, सौंदर्य प्रसाधनालय (ब्यूटी सैलून), वीडियो निर्माण और सॉफ्टवेर सहित विविध व्यवसाय में संलग्न हैं।

माना जा सकता है कि ये सभी प्रतिष्ठान काफी अच्छा कर रहे हैं क्योंकि ‘माइडस टच’ (चमत्कारिक शक्ति) स्वर्ण से जुड़ी अभिव्यक्ति है। यह भी अनुमान किया जा सकता है कि इन प्रतिष्ठानों के मालिक और उनके कर्मचारी अपनी-अपनी कंपनियों के लिए सचमुच इस स्वर्ण-आभासी नामकरण का अर्थ समझते होंगे।

तथापि भूल यह है कि: माइडस या माइडस टच अंततः उतना स्वर्णिम नहीं था। कम-से-कम माइडस के लिए तो नहीं ही था।

यूनानी दंतकथाओं के अनुसार माइडस फ्रिजिआ का राजा था। यह क्षेत्र आजकल का तुर्की है। शराब और अंगूर की फसल के यूनानी देवता, डियोनिसस ने माइडस से मनवांछित वरदान माँगने को कहा। माइडस ने माँगा कि वह जिस किसी वस्तु को स्पर्श करे, वह स्वर्ण में बदल जाए। शीघ्र ही, अपनी नई शक्ति से आनंदित माइडस ने इसका परीक्षण करना चाहा।

किंवदंती के अनुसार उसने सर्वप्रथम बलूत की टहनी और फिर एक पत्थर को स्पर्श किया और दोनों ही स्वर्ण में बदल गए। अति प्रफुल्लित होकर वह अपने घर पहुँचते ही गुलाब के बाग में एक-एक गुलाब को स्पर्श किया और सभी के सभी स्वर्ण बन गए। उसने सेवकों को दावत सजाने को कहा। किन्तु यह जानकर कि उसका हाथ लगते ही आहार और पेय पदार्थ भी स्वर्ण में बदल जायेंगे, भूखे माइडस को अपनी इच्छा पर शोक हुआ और इस पर पश्चात्ताप करने लगा।

तीसरी सदी के यूनानी कवि क्लोडियस क्लोडिएनस ने माइडस की दुर्दशा का उल्लेख किया है – ‘इस तरह माइडस को जब पता चला कि वह स्पर्श करके हर चीज को स्वर्ण में बदल सकता था, तब सबसे पहले वह गर्व से बावला हो गया। लेकिन जब उसने देखा कि उसका भोजन कड़ा हो गया और उसका पेय पदार्थ कठोर होकर स्वर्ण हिम बन गया, तब समझ में आया कि यह वरदान असल में एक अभिशाप था। माइडस को स्वर्ण से घृणा हो गई और वह अपनी प्रार्थना पर शोक करने लगा।’

तत्पश्चात, माइडस की बेटी उसके पास आई, जो गुलाबों की सुगंध चले जाने और उनके कठोर हो जाने को लेकर परेशान थी। माइडस जब अपनी बेटी को सांत्वना देने पहुँचा और उसे स्पर्श किया, तब वह भी स्वर्ण में बदल गई। यूनानी दार्शनिक अरस्तू के अनुसार, माइडस स्वर्ण स्पर्श के लिए अपनी ‘व्यर्थ याचना’ के फलस्वरूप भूख से चल बसा।

निःसंदेह, उद्यमशील मुम्बई के इन प्रतिष्ठानों को इस दंतकथा की जानकारी नहीं है!