Published: 27 सितंबर 2017
हमारी जानकारी : अर्थव्यवस्था में स्वर्ण की भूमिका पर पुनर्विचार
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अधिकाँश आधुनिक अर्थशास्त्री आजकल स्वर्ण को एक वस्तु से अधिक कुछ नहीं मानते हैं; क्योंकि कागजी मुद्रा के आविष्कार और प्रौद्योगिकी प्रगति के बाद से, लोग मुद्रा के लिए कंप्यूटर के समकक्ष उपकरणों के सहारे काम कर लेते हैं (जैसे कि ऑनलाइन होकर अपने बिल का भुगतान या ऑनलाइन बैंकिंग करते हैं). इसके पहले स्वर्ण ही वह मूल्य था, जिसे विभिन्न राष्ट्र मुद्रा मानते थे.
1991 में, जब भारत सरकार के पास महज कुछ सप्ताहों के आयात – मुख्यतः तेल का, जिसके बिना अर्थव्यवस्था का पहिया चल नहीं सकता – के लायक विदेशी मुद्रा बची थी, तब अपने व्यापार भुगतान संबंधी दायित्वों को पूरा करने की क्षमता के प्रति वैश्विक बैंकों का भरोसा पुनर्स्थापित करने के उद्देश्य से पर्याप्त धन हासिल करने के लिए, हमें अपना स्वर्ण भण्डार गिरवी रखना पड़ा था।.
इतिहास ने साबित किया है कि युद्धों और उथल-पुथल के दौरान, साम्राज्यों और सरकारों के परिवर्तनों के बीच, और संकट के समय एकमात्र स्वर्ण ही अपना मूल्य बनाए रखता है. सचमुच, आधिकारिक रूप से स्वर्ण को केवल औद्योगिक मूल्य के तौर पर रखा जाता है; किन्तु यह विश्व की प्राचीनतम एवं सर्वाधिक सम्मानित मुद्रा है और जब राष्ट्रीय कागजी मुद्रा का मूल्य ह्रास होता है, तब एकमात्र यही काम आता है.
अनेक आंकलनों और अध्ययनों के अनुसार, भारत में, निजी स्वामित्व के अधीन – मुख्यतः परिवारों और व्यक्तियों के पास– जितना स्वर्ण है, वह अभी तक उत्खनित सम्पूर्ण स्वर्ण का लगभग 10 प्रतिशत है. इसका परिमाण लगभग 24,000 मीट्रिक टन है, जो आभूषण, सिक्कों और छड़ों की शक्ल में है. भारत सरकार ने समय-समय पर निजी स्वामित्व के स्वर्ण के कम से कम कुछ भाग का मुद्रीकरण करने का प्रयास किया है, किन्तु इसमें कोई ख़ास सफलता नहीं मिली.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि स्वर्ण के रूप में रखी गयी बचत को निवेश पूंजी में परिवर्तित करने से भारत की विकास संभावनाओं पर भारी अंतर पडेगा. भारत में नीति निर्धारक अनियांत्रिक स्वर्ण आयात के प्रभाव को लेकर, और विशेषकर मौजूदा अंतरराष्ट्रीय आर्थिक परिस्थितियों में देश के वर्तमान खाता एवं व्यापार संतुलन के प्रभाव को लेकर चिंतित हैं. किन्तु, स्वर्ण को महज एक और वस्तु समझना, इसका कोई उपाय नहीं हो सकता.
हर बात के बावजूद, पश्चिमी और पूर्वी देशों में स्वर्ण के प्रति रवैये में भिन्नता है. स्वर्ण को मुद्रा के सन्दर्भ में स्वीकारने को लेकर, विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका में लोग अविश्वास और तिरस्कार का प्रदर्शन करते हैं. किन्तु, पूर्व के देशों में सरकारों और व्यक्तियों द्वारा धन के रूप में स्वर्ण का संग्रह किया जाता है; भारत जैसे कुछ देशों में इसे पूज्य माना जाता है.
व्यवहारवादी अर्थशास्त्र में पूर्वाग्रहों को, और आर्थिक व्यवहार पर उनके प्रभाव के तरीकों को चिन्हित किया गया है. इस तरह का एक पूर्वाग्रह, सुरक्षित मूल्य पूर्वाग्रह है जो स्वर्ण-विशिष्ट है; यह पीला धातु संकट के समय सबसे अधिक सुरक्षा प्रदान करता है. यह पूर्वाग्रह अनिश्चितता के विरुद्ध निवेशकों के विवेक का निरूपण है.
स्वर्ण के प्रति भारतीयों के गूढ़ और भावनात्मक सम्बन्ध – जिसका दायरा अर्थशास्त्र, संस्कृति और परम्परा तक विस्तृत है – और जिससे उनका व्यवहार प्रभावित होता है – को देखते हुए, संभवतः बुद्धिमानी इसी में है कि हमें अपनी अर्थव्यवस्था में स्वर्ण की भूमिका पर पुनर्विचार करना चाहिए.