Published: 27 अक्टूबर 2021

मंगलसूत्र: एक पवित्र धागे की कहानी जो भारत की दुल्हनों को बांधे रखता है

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मंगलसूत्र, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'पवित्र धागा', भारतीय दुल्हन के आभूषण और शादी की रस्मों का एक महत्वपूर्ण अंग है। देश के लगभग हर समुदाय और क्षेत्र में मंगलसूत्र का अपना संस्करण है, शायद एक अलग नाम, आकार या डिज़ाइन के साथ। मंगलसूत्रों के इन असंख्य रूपों को एकजुट करना सोने का बहुतों को लाभ पहुँचाने वाला इस्तेमाल है, यह एक ऐसी परंपरा है जिसे क्षेत्रीय सीमाओं से परे शुभ माना जाता है। भारत में मंगलसूत्र की पवित्रता भाषा, संस्कृति और यहाँ तक कि धर्म की सभी सीमाओं से परे है।  

आइए, भारत के राज्यों और यहाँ की परंपराओं में मंगलसूत्र के कुछ रूपों को देखें: 

दक्षिणी राज्य 

यह व्यापक रूपसे माना जाता है कि मंगलसूत्र की उत्पत्ति भारत के दक्षिणी राज्यों में हुई थी और धीरे-धीरे इसे अन्य क्षेत्रों द्वारा अपनायागया था।समुदाय और जाति के आधार पर इस पवित्र धागे को दक्षिण भारत में कई नामों से पुकारा जाता है। सबसे लोकप्रिय नामों में से एकथाली या थिरुमंगलयम है, इसमें एक लंबा पीला धागा और तत्कालीन सर्वोच्च देवी का प्रतिनिधित्व करने के लिए सोने का पेंडेंट होता है।  

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तमिलनाडु 

थाली प्यार, सम्मान, गरिमा और शादी के चिरस्थायी बंधन का प्रतीक है। तमिलनाडु में, थाली के डिजाइन समुदायों के आधार पर भिन्न हो सकते हैं। अय्यर मंगलसूत्र में तुलसी के पेड़, भगवान शिव जैसे रूपांकन होते हैं, जबकि अयंगर थाली में भगवान विष्णु के रूप हो सकते हैं।   

केरल 

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केरल की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परंपराओं में सोने की जड़ें बहुत गहरी हैं, जिसमें दुल्हन के सोने के आभूषण विवाह का मुख्य आकर्षण हैं। कई समुदायों में उत्कृष्टथाली होती है, जिसका आकार एक पत्ते जैसा होता है। इसे कभी-कभी इला थाली भी कहा जाता है। केरल में कई समुदायों में एक उत्कृष्ट थाली होती है, जिसे शुद्ध सोने की पत्ती के पेंडेंट के साथ लंबी सोने की चेन से बनाया जाता है। इसे कभी-कभी इला थाली भी कहा जाता है। कई कन्टेम्परेरी थाली डिजाइन अक्सर हीरे, माणिक जड़ कर या दूल्हे के आद्याक्षर से सुनहरी थाली को और अधिक कस्टमाइज़ करते हैं। 

केरल में मिन्नू को भी देखा जा सकता है - जो सीरियाई ईसाई शादियों के लिए पारंपरिक मंगलसूत्र है। सोने के आभूषणों के आदान-प्रदान से लेकर मंथराकोडी - अर्थात सोने और चाँदी के धागों से कशीदाकारी वाली रेशम की साड़ी, तक सोने के गहने सीरियाई ईसाईयों की शादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। मिन्नू एक छोटा पेंडेंट होता है जिसमें 13 सुनहरे मनके होते हैं जो दिल के आकार के तमगे पर क्रॉस का आकार बनाते हैं। पेंडेंट को दूल्हे के परिवार द्वारा उपहार में दिए गए मंथराकोडी से लिए गए धागों से बाँधा जाता है। केरल के दक्षिणी हिस्सों (त्रावणकोर) में मुस्लिम दुल्हनें भी थाली पहनती हैं। 

आंध्र प्रदेश 

आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक के कुछ हिस्सों की दुल्हनों कीथाली की डिजाइन एक समान दिखती है (जिसे तेलुगु में अक्सर पुस्टेलु , रामर थालीया बोट्टू कहा जाता है)। इसमें देवी शक्ति और भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक गोलाकार डिस्क होती है। इन थालियों को आम तौर पर उत्तर भारतीय मंगलसूत्र के समान सोने की चेन या काले और सोने के मनकों की चेन में जोड़ा जाता है। दिलचस्प बात यह है कि कई तेलुगु समुदायों में, शादी के प्रत्येक पक्ष द्वारा एक डिस्क दी जाती है। 

कर्नाटक

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कूर्गी शादियाँ कुछ आकर्षक रीति-रिवाजों और परंपराओं के कारण एक मजेदार, जीवंत समारोह होती हैं। सोना एक महत्वपूर्ण रूपांकन है, चाहे वह शादी की थीम हो, रंग हो या आभूषण। कूर्गी दुल्हनें शादी के प्रतीक के रूप में कार्तमणि पाठक नामक एक सोने का आभूषण पहनती हैं जो मंगलसूत्र के बराबर है। कोडवा दुल्हन के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण आभूषणों में से एक है। कार्तमणि और पाठक, दोनों अलग-अलग आभूषण हैं, जहाँ पाठक एक सोने का पेंडेंट होता है, जिस पर देवी लक्ष्मी या रानी विक्टोरिया का उत्कीर्णन होता है और सिक्के के चारों ओर छोटे माणिक के साथ एक बड़ा सोने का सिक्का होता है। सिक्के के पेंडेंट के ऊपर एक कोबरा की आकृति होती है, जो प्रजनन क्षमता को दर्शाती है। 

कार्तमणि मूँगे और सोने के मनकों से बना एक हार होता है, जिन्हें एक धागे में पिरोया जाता है। अक्सर धागे के स्थान पर सोने की चेन का इस्तेमाल किया जाता है। कार्तमणि पाठक के बारे में आकर्षक बात यह है कि अन्य सभी मंगलसूत्र अनुष्ठानों के विपरीत, शादी से एक दिन पहले दुल्हन की माँ उसे यह बाँधती है। 

महाराष्ट्र और गुजरात 

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महाराष्ट्र के मंगलसूत्र उनके काले और सोने के मनकों के लिए काफी प्रसिद्ध हैं, जो सोने की दो वटियों या कपों वाले पेंडेंट के साथ डबल लाइन में एक साथ गुंथे होते हैं। यह वटी आकृति शिव और शक्ति को दर्शाती है और सोने के मनकों की दो लड़ एक साथ जुड़ी होती हैं जो पवित्र मिलन का प्रतीक हैं। माना जाता है कि मंगलसूत्र में काले मनकों की माला बुराई को दूर करती है और वैवाहिक जीवन में खुशियों का संचार करती है। नई दुल्हनें अक्सर अपनी नवविवाहित स्थिति को दर्शाने के लिए शादी के पूरे एक साल तक मंगलसूत्र पेंडेंट को उल्टा पहनती हैं।  
 
परंपरागत रूप से, गुजराती दुल्हनें अपनी शादीशुदा स्थिति को दर्शाने के लिए हीरे की नाक की कील पहनती थीं। वे काले मनकों और सोने के जटिल पेंडेंट वाला पारंपरिक मंगलसूत्र भी पहनती हैं। मंगलसूत्र कीआधुनिक डिज़ाइन में पहनने की क्षमता को बढ़ाने के लिए कन्टेम्परेरी सोने या हीरे के पेंडेंट के साथ एक छोटी चेन होती है।

मंगलसूत्र सिंधी विवाह का एक अनिवार्य पहलू है। गुजराती मंगलसूत्र की तरह इसमें पेंडेंट केसाथ काले और सोने के मनके वाली चेन होती है, और इसकी डिजाइन दूल्हे और दुल्हन की व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करती है।

बिहार

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बिहारी संस्कृति में, बिछुआ या पैर की उँगली की अँगूठी दुल्हन के आभूषणों के सबसे महत्वपूर्ण प्रतीकों में से एक है। बिहारी दुल्हनें 'तागपाग' नामक मंगलसूत्र भी पहनती हैं। यह एक अनूठा आभूषण होता है, जिसमें दोहरी लड़ और सोने का पेंडेंट होता है।

कश्मीर  

कश्मीर में दिझोर या देहजूर नामक अद्वितीय ब्राइडल ज्वैलरी होती है, जिसमें सादे लाल धागे में सोने की कई बालियाँ व्यवस्थित की जाती हैं। शादी समारोह के तुरंत बाद, दूल्हे का परिवार धागे के स्थान पर सोने की चेन भेंट करता है। इस चेन को आथ कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ छोटा सा सुनहरा आभूषण होता है।  
 
भारतीय वैवाहिक परंपराएँ सोने के गहनों के भारी उपयोग को दर्शाती हैं, और यही बात मंगलसूत्र के लिए भी सच है। सोना सुरक्षा, समृद्धि, दीर्घायु और स्थिरता का प्रतीक है, और सोनेकामंगलसूत्र भारतीय दुल्हन की पोशाकका एक अनिवार्य हिस्सा है। आजकल दुल्हनें अक्सर इसे मॉडर्न ट्विस्ट देते हुए, अपनी पसंद के हिसाब से कस्टमाइज़ करा रही हैं। इसका आकार, प्रकार और पद्धति समुदायों के बीच भिन्न हो सकती है, लेकिन सीमाओं और भाषाओं से इतर यह प्रेम और पवित्र मिलन के प्रतीक के रूप में महत्व रखता है।