Published: 20 फ़रवरी 2018

स्वर्णिम प्रवेशद्वार : अमृतसर

Tale of divine - Golden Temple

विभिन्न धर्मों के पूजा स्थलों के समान भारत के मंदिर अपनी धार्मिक एवं वास्तुशिल्पीय महत्ता और भव्यता के साथ आस्था, आतंरिक सौन्दर्य और पवित्रता के आलोक के रूप में खड़े हैं. उनमें वैसे मंदिरों में, जिन पर स्वर्ण की परत चढ़ाई गयी है या आंशिक तौर पर सर्वाधिक इच्छित, शुद्धतम मूल्यवान धातु, स्वर्ण की विशाल मात्रा से बनाए गए हैं, धार्मिक भावना के बगैर भी सालों भर भारी संख्या में नंगे पांव लोग आते रहते हैं. अगर संभव होता तो, एकमात्र स्वर्ण ही है जो भक्तों और पर्यटकों को समान रूप से गहरा भावनात्मक आकर्षण में चार चाँद लगाता है.

संभवतः भारत का सबसे प्रसिद्ध “स्वर्णिम” मंदिर अमृतसर में है – हरमंदिर साहिब, सिक्खों का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल, जिसे सहज बोलचाल में स्वर्ण मंदिर कहा जाता है.

पूजा में समावेशीकरण का यह सुन्दर स्मारक महान पांचवें सिक्ख गुरु, श्री अर्जन देव द्वारा अभिकल्पित और निर्मित किया गया था. उन्‍होंने इसको खुलेपन और सभी पंथों के लोगों का स्वागत करने के प्रतीक स्वरुप इसमें सभी चार दिशाओं से चार प्रवेश द्वार बनवाये. उल्लेखनीय है कि इसकी नींव लाहौर के मुसलमान संत, हज़रात मियाँ मीर जी द्वारा रखी गयी थी और इसे हिन्दू एवं मुस्लिम शैली से बनाया गया था. स्वरुप और भाव, दोनों में सर्वसमावेशी!

स्वर्ण मंदिर लगभग 14 वर्षों के निर्माण कार्य के बाद 1604 में बन कर पूरा हुआ. किन्तु 19वीं शताब्दी के आरम्भ में आकर ही पंजाब के महानतम शासकों में से एक, महाराजा रणजीत सिंह द्वारा इसकी ऊपरी मंजिल का पूरा हिस्सा स्वर्ण से आच्छादित किया गया जिसमे 750 किलो सोना लगा.

अमृत समान स्वच्छ जल के सरोवर – अमृत-सर - के बीचों-बीच स्थित स्वर्ण मंदिर वर्षा, तूफ़ान, शीत और धूप में सदैव दमकता हुआ खडा रहता है. अनेक भीतरी गलियारों, मेहराबों और छतों पर बेशकीमती धातु की सजावट है. ऐसा प्रतीत होता है कि इसकी चमक समय और साल के प्रत्येक दिन 1,00,000 से अधिक श्रद्धालु के आगमन के साथ और भी बढ़ती जाती है.