Published: 05 सितंबर 2017

महासागरों में : अप्रत्याशित स्वर्ण

मनुष्य स्वर्ण की खोज में सदियों से हमारी पृथ्वी की सतह पर उत्खनन और खुदाई करता रहा है. इस प्रयास से मनुष्य आज तक 1,73,000 मीट्रिक टन स्वर्ण जमा कर चुका है. वैश्विक मांग के चरम पर पहुँचने के साथ, स्वर्ण की खोज में हमारे प्रयास की दिशा धरती में और भी गहरी, विशेषकर महासागरों के नीचे तक पहुँच सकती है.

ऐसा है कि हमारे महासागरों में विद्यमान कुल अनुमानित स्वर्ण का मूल्य $150 ट्रिलियन के करीब है. नैशनल जियोग्राफिक के अनुसार, इसका अर्थ है कि यदि इसे धरती की जनसंख्या में बराबर-बराबर बांटा जाए तो हर एक व्यक्ति के हिस्से में 4.5 किलोग्राम स्वर्ण आयेगा. सुनकर अचंभित हो गए न?

महासागरों में स्वर्ण दो रूपों में विद्यमान है – समुद्र के तल पर चट्टानों में जमा स्वर्ण और समुद्र के पानी में घुले सूक्ष्म स्वर्ण कण. समुद्र के पानी में स्वर्ण अत्यंत विरल अवस्था में रहता है और प्रति ट्रिलियन में कुछ भाग के संकेन्द्रण में मौजूद रहता है. इसे इस रूप में समझा जा सकता है कि, समुद्र के 1 लीटर पानी में एक ग्राम स्वर्ण का 1/13-बिलियंथ भाग रहता है. दूसरे शब्दों में, 1 ग्राम स्वर्ण निकालने के लिए 13 बिलियन लीटर समुद्री पानी की आवश्यकता होगी. अगर आप सोच रहे हैं 1 ग्राम स्वर्ण के लिए इतना ज्यादा पानी, तो आप सही सोच रहे हैं. असल में, इस स्वर्ण का उत्खनन नहीं होने की पीछे आर्थिक साधनों का अभाव सबसे प्राथमिक कारण है, जिसके चलते समुद्र तल के नीचे का स्वर्ण बचा हुआ है. लेकिन ऐसा भी नहीं समझें कि इसकी कोशिश नहीं की गयी है.

जर्मनी के वैज्ञानिक, फ्रिट्ज हेबर ने प्रथम विश्व युद्ध के समाप्त होने पर जर्मनी को सौंपे गए भारी-भरकम बिल के भुगतान के बदले पानी से स्वर्ण को अलग करने के लिए विशाल अपकेन्द्रण यंत्र का प्रयोग करने की सलाह दी थी. यद्यपि, अपकेन्द्रण यंत्र को चलाने के लिए आवश्यक ऊर्जा और यंत्र के द्वारा संसाधित होने को आवश्यक समुद्री पानी की भारी मात्रा के कारण यह प्रस्ताव व्यावहारिक और आर्थिक रूप से अव्यावहारिक हो गया.

एक और वैज्ञानिक, चेन्नई, भारत के जॉय प्रकाश अगरवाल ने प्रस्ताव दिया कि एक गतिहीन तरल झिल्ली (आइएलएम्) का प्रयोग करके स्वर्ण को निकाला जा सकता था. अगरवाल का कहना था कि उनके पद्धति द्वारा वर्तमान समाधान की तुलना में आधे खर्च में स्वर्ण निकाला जा सकता था. यह प्रस्ताव भारत सरकार को काफी अच्छा लगा था.

संभवतः, समुद्र से स्वर्ण निकालने के लिए आधुनिक काल का सबसे प्रसिद्ध सुझाव जैवचिकित्सीय इंजिनियर और आविष्कारक मार्क सुलिवन का था, जिन्होंने एक इंजन तैयार करके मशहूर अमरीकी टीवी शो शार्क टैंक में प्रस्तुत करते पृथ्वी के कोरिओलिस इफ़ेक्ट के प्रयोग से ऊर्जा उत्पन्न करने का दावा किया. उनके सामुद्रिक टरबाइन से, उपोत्पाद के रूप में समुद्री पानी से छानकर स्वर्ण निकाला जा सकता था.

जैसा कि अधिकाधिक संख्या में वैज्ञानिक और सरकारों द्वारा गहरे समुद्र में पड़े मूल्य की माप की जा रही है, यह आशा की जा सकती है की महासागरों से स्वर्ण निकालने की संभावना और प्रबल ही होगी.