Published: 16 अगस्त 2017

सोना मुद्रास्फीति के खिलाफ एक बचाव क्यों माना जाता है?

मुद्रास्फीति के 5% होने पर, बैंक डिपोसिट में रखा पैसा जो आपको 7-8% रिटर्न देता है वास्तव में आपको कोई रिटर्न नहीं दे रहा होता है। एक स्मार्ट निवेशक के रूप में, आप उन उत्पादों पर विचार कर सकते हैं जो मुद्रास्फीति के बराबर या उससे ज्यादा रिटर्न देते हैं। आप अपने पोर्टफोलियो में मुद्रास्फीति-संरक्षित प्रतिभूतियां जोड़ सकते हैं। ये परिसंपत्तियां मुद्रास्फीति के साथ मिलकर चलती हैं और आपके निवेश की रक्षा करती हैं।

सोना: मुद्रास्फीति के खिलाफ बचाव?

मुद्रास्फीति के दौरान, निवेशकों को डर लगता है कि इक्विटी ऋण प्रतिभूतियां महंगी हो सकती हैं और वे अपेक्षाकृत कम प्रदर्शन कर सकती हैं। दूसरी ओर सोने ने, उच्च मुद्रास्फीति की अवधि के दौरान ऐतिहासिक रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है।

1946, 1974, 1975, 1979, और 1980 में जब अमेरिका में मुद्रास्फीति ऊंची थी तो इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिसर्च इन मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी पेपर के मुताबिक डाउ द्वारा मापे गये स्टॉक पर औसत वास्तविक लाभ -12.33% था जबकि सोने पर 130.4% था।

इसका एक कारण यह है कि एक ऊंची मुद्रास्फीति के रुझान के कारण सोने की मांग बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि मुद्रास्फीति बांड और अन्य निश्चित आय वाली संपत्तियों को दीर्घकालिक निवेशकों के लिए कम आकर्षक बनाती है।

सोने की सीमित आपूर्ति और कई संस्कृतियों में इसके आंतरिक मूल्य के कारण मुद्रास्फीति के बावजूद सोना बेहतर प्रदर्शन करता है। बाजार में अनिश्चितता से बचने के लिये लोग सोने में निवेश करते हैं। यह मांग कीमतों को अधिक बनाये रखती है। विश्व की अर्थव्यवस्था और डॉलर के मूल्य सोने की विपरीत दिशा में आगे बढ़ते हैं। सोने में निवेश निवेशक की क्रय शक्ति को वर्तमान से भविष्‍य की ओर खिसका देता है।

सोना मुद्रास्फीति के जोखिम को कम कर देता है क्‍योंकि आम तौर पर इसकी कीमत में बढ़ोतरी मुद्रास्फीति की दर से अधिक होती है। ऐसा आंशिक रूप से इसलिये होता है क्योंकि सोना एक वस्तु है ना कि कागज़ी परिसंपत्ति जैसे कि कोई सरकारी बांड। जैसे-जैसे मुद्रास्फीति तेज़ी से बढ़ती है, कागज़ी परिसंपत्तियों के मूल्य के उनके आंतरिक मूल्य के बराबर हो जाने का डर बढ़ जाता है।

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भारत में सोने और मुद्रास्फीति के बीच संबंध
भारत में, लोग परंपरागत रूप से मुद्रास्फीति से बचने के लिये सोना खरीदते रहे हैं ताकि वे अपनी बचत को कीमत वृद्धि से सुरक्षित रख सकें। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के एक अध्ययन से पता चलता है कि मुद्रास्फ़ीति में हर एक प्रतिशत की बढ़ोतरी के लिए, भारतीय सोने की मांग 2.6% बढ़ती है।
भारत में, ऐतिहासिक रूप से, पिछले तीन से चार वर्षों को छोड़कर, सोने ने अच्छा प्रदर्शन किया है और लंबी अवधि में मुद्रास्फ़ीति को हराया है। सरकार के प्रयासों (शुल्‍क बढ़ोतरी) के परिणामस्वरूप, सोने की बढ़ती मांग में कमी आई है, और मांग में गिरावट कीमत में प्रतिबिंबित हुयी है।

विकसित बाजारों में निवेशक मुद्रास्फीति से सुरक्षा के रूप में सोने का उपयोग करते हैं। लेकिन, भारत जैसे विकासशील देशों के निवेशकों के लिए यह मुद्रा के मूल्यह्रास के खिलाफ़ सुरक्षा के रूप में भी काम करता है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में पीले धातु की वृद्धि और एक अपेक्षाकृत कमजोर शेयर बाजार के अलावा, यह 15 सालों (2001-16) के दौरान रुपए में आने वाली गिरावट है जिससे सेंसेक्स रिटर्न का मुक़ाबला करने में सोने को मदद मिली।
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