Published: 04 सितंबर 2017

स्वर्ण का मानक

यह सुस्थापित तथ्य है कि वित्त, व्यापार एवं मूल्य की अंतःक्रिया के मामले में गत सदी के दौरान विश्व में अनेक उतार-चढ़ाव हुए हैं.

बीसवीं सदी के अर्थशास्त्रियों को विश्वव्यापी भारी मंदी और द्वितीय विश्व युद्ध के नतीजों को देखते हुए राष्ट्रों की तुलना करने वाली सकल घरेलु उत्पाद पद्धति (जीडीपी विधि) संबंधी अपने रुख पर दोबारा विचार करने को बाध्य होना पड़ा, क्योंकि इस पद्धति के नतीजे आर्थिक सभ्यता के इतिहास में कुछ सबसे बुरी आर्थिक परिस्थितियों के रूप में सामने आये थे. साथ ही, किसी राष्ट्र की वृद्धि एवं प्रगति की माप या विभिन्न राष्ट्रों के बीच तुलना के लिए मुद्रा भरोसेमंद स्थिरांक भी नहीं रह गयी थी.

सामाजिक प्रगति की अनिवार्यताओं से विभिन्न राष्ट्रों के समक्ष अर्थशास्त्र एवं सामाजिक प्रगति के बीच सम्बन्ध का अध्ययन एवं विचार करने वाली रणनीति के मूल्यांकन हेतु जीडीपी माप पर चुनौती खड़ी हो गयी. इस पृष्ठभूमि में स्वर्ण मानक सुस्थापित और सुरक्षात्मक उपाय के रूप में प्रयोग किया जाता था.

स्वर्ण मानक क्या है ?

स्वर्ण मानक की भूमिका तब होती है जब कोई देश अपनी मुद्रा के मूल्य को अपने स्वर्ण भण्डार के साथ सम्बद्ध करता है, अर्थात अगर किसी व्यक्ति के पास देश की कागजी मुद्रा है तो वह इसे सरकार के पास जमा करके देश के आरक्षित स्वर्ण भण्डार से उस राशि के सहमत मूल्य के बराबर स्वर्ण प्राप्त कर सकता है. स्वर्ण की राशि को “समतुल्य मूल्य” कहा जाता है. स्वर्ण में लगातार निवेश करने वाले, खरीदने वाले और बतौर उपहार देने वाले लोगों के लिए यह उत्तम निवेश होता है, क्योंकि यह एक स्थिर उच्च मूल्य की अत्यंत सुरक्षित संपदा है और आकस्मिक परिस्थितियों, विशेषकर अस्थिर वैश्विक अर्थव्यवस्था में किसी व्यक्ति के लिए वास्तविक सहारा का काम करता है. स्वर्ण मानक फिलहाल किसी भी सरकार द्वारा प्रयोग नहीं किया जा रहा है. ब्रिटेन ने 1931 में और संयुक्त राज्य अमेरिका में 1933 में स्वर्ण मानक का प्रयोग बंद कर दिया गया था. स्वर्ण मानक की जगह पूरी तरह से स्वीकृत मुद्रा ने ले ली है.

स्वीकृत मुद्राओं तथा अन्य आर्थिक संपदाओं से विशेषकर आर्थिक मंदी के दौर में, लोगों का भरोसा जब उठ जाता है या उस पर कभी भरोसा नहीं रहता, तब सामान्य तौर पर स्वर्ण का मूल्य बना रहता है. ऐसा माना जाता है कि स्वर्ण का अपना अन्तर्निहित मूल्य होता है, इसलिए यह कभी बेकार नहीं होता, ख़ास कर भारत जैसे स्वर्ण-प्रेमी देश में तो कतई नहीं.

वर्ल्ड गोल्ड कौंसिल के अनुसार, 2015 में भारत का स्वर्ण भण्डार 800 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर था. इसकी तुलना एप्पल के बाज़ार पूंजीकरण से की जा सकती है, जो 2015 में 600 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर था (भारत की दो सबसे बड़ी सूचीबद्ध कम्पनियां, रिलायंस इंडस्ट्रीज और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के प्रत्येक का मूल्य लगभग 50-50 बिलियन अमेरिकी डॉलर आंका गया था).