Published: 04 सितंबर 2017

पद्मनाभस्वामी मंदिर का स्वर्ण कोष

जबकि कुछ लोग प्राचीन खजानों के खोज में सातों समुद्र की यात्रा करते हैं, भारत में सम्पूर्ण भूभाग में छिपे इसके अपने छोटे-छोटे खजाने भरे पड़े है, जो अक्सर पहुँच से बाहर हैं.

किंवदंती के अनुसार, अनेक वर्षों तक तिरुवनंतपुरम में प्राचीन श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के नीचे उत्कृष्ट खजाने छिपाए जाते रहे थे. भूतकाल में भारतीय राजाओं ने एक अनुष्ठान किया था जिसमे वयस्कता प्राप्त करने वाले स्थानीय राजकुमारों को तौल कर उनके भार के बराबर स्वर्ण मंदिर को दान कर दिया करते थे. ऐसी मान्यता है कि इस प्रकार के धन अभी भी बिना गिने अरक्षित अवस्था में मंदिर के तहखाने में छिपे हैं.

वर्ष 2011 में, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर मंदिर के छः तहखानों को खोला गया. इन प्राचीन कक्षों में इतिहास के विभिन्न कालों में संचित खजाने रखे हैं जिनमें से कुछ तो 12वीं सदी ईस्वी के हैं. इनमें से सबसे महत्वपूर्ण खजाना महाविष्णु की स्वर्ण प्रतिमा और स्वर्ण से बनी “अंकी’ है जिनका वजन करीब 30 किलोग्राम है.

महाविष्णु की स्वर्ण प्रतिमा के बारे में मान्यता है कि यह ‘उत्सव विग्रहम’ की प्रतिकृति या उत्सवों एवं विशेष अवसरों पर प्रयुक्त प्रतिमा का रूप है. इसकी ऊंचाई लगभग एक फुट है. मंदिर की दीवारों में मिले अन्य खजानों में शुद्ध स्वर्ण की एक और प्रतिमा तथा चमचमाते नीलम, पन्ने, एवं अन्य बहुमूल्‍य रत्नों से जड़ित दो स्वर्ण नारियल सम्मिलित हैं. प्रधान देवता के अलंकार के लिए पारंपरिक रूप से प्रयुक्त एक स्वर्ण “अंकी” 16 भाग में मिला था.

अलग-अलग शासन द्वारा जारी अनगिनत सिक्के और स्वर्ण आभूषण पाए गए, जिनके बारे में कहा जाता है कि इनका उपयोग प्रधान देवता को सजाने के लिए किया जाता था. इन आभूषणों और सिक्को की तिथि दो हज़ार वर्षों की है जिसकी अवधि प्राचीन काल से लेकर हाल के 1914 ईस्वी तक की है.

भारत के पूर्व महालेखा नियंत्रक, विनोद राय ने दावा किया था कि कक्ष ए में ईसा पूर्व लगभग 200 वर्ष पुराने 800 किलोग्राम स्वर्ण मुद्राओं का भण्डार रखा है जिनमें से प्रत्येक का मूल्य लगभग 2.70 करोड़ रुपये (0.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर) है.

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में अभी भी अनेक कक्ष हैं जिन्हें खोला नहीं गया है और अनेक का अभी पता लगना बाकी है. तथापि, यह मंदिर अनंत काल तक बहुमूल्य बना रहेगा.